Article By ANAND VISHWAKARMA

Monday, 29 January 2018

मां नर्मदा के तट की प्राचीनता सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुरानी

रेऊगांव-रेहटी :-
मां नर्मदा जी के उत्तर तट पर आयोजित संगीतमय श्री नर्मदापुराण कथा के पांचवे दिन  साध्वी श्री अखिलेश्वरी जी ने मां नर्मदा को प्रणाम करते हुए कथा को प्रारंभ किया आज दीदी मां ने नर्मदा तीर्थ  के बारे में बताते हुए कहा  कि भारत की नदियों में नर्मदा का अपना महत्व है। ओर कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है। साध्वी श्री ने कहा कि पुरानी मान्यता के अनुसार किसी जमाने में यहाँ तट के किनारे तीर्थों  पर मेकल,व्यास,भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था।दीदी मां ने  बताया कि  ध्यानियों व ऋषि मुनियों की तपस्या व ध्यान के लिए नर्मदा जी के तट बहुत अच्छे माने जाते है । दीदी मां ने मां नर्मदा तट का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना बताते हुए कहा कि यहां का हर एक तीर्थ  पूजनीय ओर  बहुत प्राचीन है । तीर्थ कि अलग अलग महिमा है साध्वी श्री ने बताया कि नर्मदा जी का पहला पड़ाव जिला मंडला है, जो कि अमरकंटक के बाद से शुरू होता है यही पर  राजा सहस्रबाहु ने मां नर्मदा जी को अपनी हजार भुजाओं से रोकने की कोशिश की थी इसलिए  असका नाम 'सहस्रधारा' है। 


मां नर्मदा के  तीर्थों के बारे में बताते हुए दीदी मां ने यह भी कहा कि नर्मदा एक पहाड़ी नदी है ये किसी बर्फीली पहाड़ियों से पिघल कर नही आती है मां तो उन एक एक पौधे से आई जो यहां चारो तरफ लगे हुए थे।मगर हमारे लालच ओर स्वार्थ की वजह से मां नर्मदा का जीवन खतरे में है । ओर इस खतरे से मां को बचाने के लिए साध्वी श्री ने सभी से अधिक से अधिक वृक्ष लगाने का अनुरोध किया ।ताकि आने वाली नई पीढ़ी भी मां नर्मदा जी का लाभ ले सके। अधिक से अधिक वृक्ष लगाकर हम मां का जीवन ही नही बचाएंगे बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी जीवन बचाएंगे।साथ ही साध्वी जी  ने भी वृक्ष लगा कर इस कार्य को प्रारंभ किया। कथा को सुनने बड़ी संख्या मे लोग पहुँच रहे है।


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