विजयासन धाम की उत्पत्ति
शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर जिज्ञाषा रही है। लेकिन अभी तक इसके कोई भी ठोस साक्ष्य और प्रमाण नही मिल पाए हैं। कुछ पंडितो का कहना है कि यहां मां का आसन गिरने से यह विजयासन धाम बना लेकिन विजय शब्द का योग कैसे हुआ, इसका सटीक उत्तर वे नही दे पाएं है। लेकिन हम आपको बता दे कि मां विजायासन धाम के प्राकट्य का का सटीक उत्तर व उल्लेख श्रीमद् भागवत महापुराण में है। जो इस प्रकार है-
सलकनपुर मंदिर |
श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे। तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया। और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।
मंदिर निर्माण के संबंध में पीड़ी दर पीड़ी चली आ रही किवदंती के अनुसार आज से करीब 300 वर्ष पूर्व बंजारो द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर निर्माण और प्रतिमा मिलने की इस कथा के अनुसार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु अदृष्य हो गए। इस तरह बंजारे पशुओं को ढूंडने के लिए निकले, तो उनमें से एक बृद्ध बंजारे को एक बालिका मिली। बालिका के पूछने पर उसने सारी बात कही। तब बालिका ने कहा की आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। बंजारे ने कहा कि हमें नही पता है कि मां भगवति का स्थान कहां है। तब बालिका ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवति के दर्शन हुए।
माँ विजयासन देवी |
और उन्होने मां भगवति की पूजा-अर्चना की। कुछ ही क्षण बाद उनके खोए पशु मिल गए। मन्नत पूरी होने पर बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह घटना बंजारों द्वारा बताये जाने पर लोगों का आना शुरू हो गया और वे भी अपनी मन्नत लेकर आने लगे।
हिंसक जानवरों, चौसठ योग-योगिनियों का स्थान होने से कुछ लोग यहां पर आने में संकोच करते थे। तब स्वामी भद्रानंद ने यहां तपस्या कर चौसठ योग-योगिनियों के लिए एक स्थान स्थापित किया। तथा मंदिर के समीप ही एक धुने की स्थापना की। और इस स्थान को चैतन्य किया है। तथा धुने में एक अभिमंत्रित चिमटा, जिसे तंत्र शक्ति से अभिमंत्रित कर तली में स्थापित किया गया है। आज भी इस धुने की भवूत को ही मुख्य प्रसाद के रूप में भक्तगणों को वितरित किया जाता है।
यहां क्लिक कर जानिए कैसे हुई सलकनपुर पर्वत की उत्पत्ति
यहां क्लिक कर जानिए कैसे हुई सलकनपुर पर्वत की उत्पत्ति
आप यहां क्लिक कर यूट्यूब पर और भी अधिक जानकारी से युक्त मां बिजासन का वीडियो देख सकते हो
HI. .
ReplyDeleteThnx bhai Ye mahatv purna jankari dene ke liye. Ham kitne dino se or kitne hi logo se puncha or net me bhi kafi serching kiya.
your welcome dear
DeleteJai Mata di
ReplyDeletejai mata di
ReplyDeleteJai maa vijayasani , Satya hai maa ka darbaar , Satya hai maa ka swroop ...
ReplyDeleteWOW
ReplyDeleteAs per your information, walkabout temple is 300 hundred years old. It is good. Please search more about this religious place. I am eager to know.
ReplyDelete