लोकेशन-: मध्यप्रदेश/सीहोर/रेहटी/सलकनपुर
सलकनपुर पर्वत की उत्पत्ति
सलकनपुर पर्वत की उत्पत्ति
प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर सलकनपुर क्षेत्र जो कि सैकड़ो एकड़ में फैली बिंध्य पर्वत श्रंखला के अंतर्गत आता है।
एक शांत ज्वालामुखी के ऊपर वसा हुआ है। आज से करीब 50 हजार साल पहले ज्वालामुखी के फूटने से उसके लावे से इसका निर्माण हुआ है। शांत ज्वालामुखी करीब 1lलाखसाल के अंतराल में फूटते हैं। इसका मतलब यह है कि अभी इसको फूटने में लगभग 50 हजार साल और बाकी है। मलवा उपजाऊ होने से धीरे-धीरे यह क्षेत्र हरा-भरा हो गया। और वस्तियां वसने लगी। इनमें मुख्य रूप से होशंगावाद, रेहटी, देलाबाड़ी, आंवलीघाट, नसरूल्लागंज आदि आसपास के क्षेत्र आते हैं। पौराणिक दंत्त कथाओं में इस क्षेत्र में कई महान प्रतापी राजाओं जैसे अशोक, पांडव के आने का उल्लेख भी है। यहां भगवान बौद्ध के आने का भी उल्लेख है। जिनके सबूत आज भी मौजूद है। सारू-मारू की गुफा, सम्राट अशोक का पांचवा शिलालेख, स्तूप इसके प्रमाण हैं।
सारू-मारू की गुफा |
यहीं नही यहां कई औषधीय वृक्षों की भी प्रजातियां हैं इनमें से कई विलुप्त हो चुकी हैं। जिनसे आदिमानव अपने गहरे घावों का उपचार किया करते थे। यहां सौन्दर्य से परिपूर्ण कई जल प्रपात हैं। लेकिन जाने के रास्ते का निर्माण नही हो सका है। दर्शनीय स्थलों में सलकनपुर शक्तिपीठ विजयासन माता मंदिर, शंकर मंदिर, अमरकंटक, सारू-मारू की गुफा, सम्राट अशोक का पांचवा शिलालेख, स्तूप, देलाबाड़ी में स्थित गिन्नोरगढ़ का किला शामिल हैं।
प्राकृतिक जल प्रपात |
इन स्थलों में देवी जी की प्रतिमा का प्राकट्य, सारू-मारू की गुफा तथा इसकी लंबाई, शिलालेख, गिन्नोरगढ़ के गौंडराजाओं का राज और उनके द्वारा लौहे से सोने बनाने की कला रहस्य से भरी हुई है। इस क्षेत्र की पूरी तरह खोजबीन नही हो सकी है। अब यह क्षेत्र पर्यटन स्थल भी घोषित हो चुका है। जहां देवी धाम सलकनपुर में रोज सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करते आते हैं। नवरात्र में तो यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है।
यहां क्लिक कर जानिए कैसे बना शक्तिपीठ सलकनपुर
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