Article By ANAND VISHWAKARMA

Thursday, 23 November 2017

बाघों की सुरक्षा के लिए नही उठाए जा रहे कोई ठोस कदम, मिडघाट पर फिर एक तेंदूए की मौत

जब पूरी दुनिया बाघो की घनी आबादी के लिए तरस रही है तो वहीं दूसरी ओर भारत में बाघ संरक्षण की आस लगाए हुए बेठे है। भारत के कई इलाकों में बाघों की दुर्दशा हो रही है। जबकि भारत को बाघो की बड़ती हुई आबादी को लेकर गौरवान्वित होना चाहिए। हमारा इशारा मध्यप्रदेश के रेहटी समीप रातापानी अभ्यारण्य जंगल के बाघो की ओर हैं। जहां वे संरक्षण की  आस लगाए हुए इधर उधर भटक रहे हैं और अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप हमला करने को मजबूर हैं। क्षेत्र में तो यही चर्चा है कि बाघों के कारण ग्रामीणों में दहशत है और वे लोगोंं को हानि पहुंचा सकते हैं। जबकि हम सबको यह पता है कि ऐसी स्थिति मानव द्वारा जंगल पर अतिक्रमण करने से बनती है। सभी लोगों को बाघो द्वारा हानि की फिक्र है। कोई यह नही सोच रहा है कि इन विलुप्त होते राष्ट्रीय पशुओंं के लिए क्या सुरक्षित कदम उठाए जाएं। जबकि वन विभाग इनको घने जंगल में खदेडऩे की सोच रहा है। जबकि उन्होने यह विचार नही किया कि बाघ वापस शिकार के लालच में गांव की रुख कर सकते हैं। प्रशासन को चाहिए कि बाघ, तेंदुए आदि वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाए। पिछले दिन बुधवार को ही रेलवे मिडघाट पर एक तेंदूआ कट कर मर गया। और पिछले 6 या 7 माह पहले 3 या 4 बाघों की रैल के सामने आने से मौत हो गई थी। लेकिन इन हादसों से भी वन विभाग ने कोई सबक नही लिया। शायद वे इन बाघों के मरने का इंतजार कर रहे हैं। 
जानिए आदमखोर का सच
हाल ही में कई लोगों के यह विचार रहे कि बाघ आदमखोर है। और कई न्यूज चैनलो, अखबारो ने भी बाघ के आदमखोर होने का दावा किया था। लेकिन बाघ को शेर कहकर संबोधित करने वालों को कैसे समझाया जाए कि आदमखोर का मतलब क्या होता है। आदमखोर बाघ वे बाघ होते हैं जिन्हें मानव मांस खाने की दाड़ लग जाती है। और वे मनुष्य के मांस खाने के आदी हो जाते हैं। केवल हमला करने से वे आदमखोर नही हो जाते। जब कोई व्यक्ति जंगल में उनके क्षेत्र में आएगा तो वे हमला ही करेंगे। 
बाघों के शिकारी होंंगे संक्रिय
बाघों के संरक्षण के लिए कदम नही उठाए जाने पर बाघो के शिकारियों के सक्रिय होने की संभावना है। लेकिन अभी सबसे बड़ा खतरा रैल है जिससे कटकर इन बाघों की जान जा सकती है। 
तो फंडा यह है कि बाघो के संरक्षण के लिए प्रशासन को उचित और सख्त कदम उठाना ही चाहिए। जिससे न तो मनुष्य को नुकसान हो और ना ही बाघ को। हम लोगों को भी यह समझना होगा कि जितनी गाय हमारे लिए जितनी उपयोगी है उससे कहीं अधिक पर्यावरण के लिए बाघ भी जरूरी है। अत: इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें ताकी प्रशासन जल्स से जल्द कोई सार्थक कदम उठाए।

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