निज संवाददाता रेहटी anand
बड़ते घोर कलयुग में अब मासूम बच्चियां कहीं भी सुरक्षित नही है। छोटी बच्चियों को दुष्कर्म के शिकार बनाते हुए आए दिन यह बातें सुनने को मिलती है। जो एक जघन्य अपराध को जन्म देती है। ऐसे लोगों को फांसी की सजा भी मिले तो कम है। ऐसी ही घटना नगर के एक अधेड़ ने मानवता को तार तार करते हुए कक्षा 7वीं में पढऩे वाली 12 वर्षीय एक मासूम को बाथरूम में बुलाकर उसे अपना हवस का शिकार बनाया। और मासूम को इतना डरा दिया कि वह दो दिन तक किसी को बता नही पाई। जब पीड़ा होने पर आपबीती अपने मम्मी पापा को बताई जहां रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर उस पर धारा 376 पास्को एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है। घटना गांधी चौक के पास की बताई जाती है।
क्या होता है पास्को एक्ट
पास्को शब्द अंग्रेजी शब्द से आता है।
इसका पूर्णकालिक मतलब होता है प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फार्म सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012।
इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है।
यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।
वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है।
ये लगती हैं धाराएँ-
इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो।
इसमें सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है।
पास्को एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो।
इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इसी प्रकार पास्को अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
पास्को कानून की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है।
जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।
18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है।
यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है।
इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।
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