शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्ण सौलह कलाओं में युक्त होता है। शरद पूर्णिमा के दिन ही सौलह कलाओं में निपुण भगवान श्रीकृष्ण ने महारास लीला की थी। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। मां लक्ष्मी घर पाती है। इस तरह रोगों का नाश होता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर या दूध से बने व्यंजनों को शरद की चांदनी में रखा जाता है। जिससे दूध चंद्रमा की किरणों में उपस्थित ऊर्जा का शोषण कर लेता है। और इसका लाभ उस दूध या खीर का पान करने वाले को होता है। शरद पूर्णिमा के बाद से ही कार्तिक स्नान, व्रत, पूजा-अर्चना चालू होती है। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि बरसात के मौसम में दूध पीना हानिकारक हो सकता है। दूध शीत मौसम में ज्यादा फायदेमंद होता है। इस तरह ठंड की आरंभ ऋतु शरद पूर्णिमा की रात्रि से दूध पीना प्रारंभ करना चाहिए। जिससे दूध का पूरा लाभ शरीर को मिलता है। इसलिए शरद पूर्णिमा का हमारे लिए बहुत महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा अर्चना, जाप करने से भी मनोकामना की पूर्ति होती है।
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जानिए बरसात के दिनों मे दूध का सेवन क्यों हानिकारक होता है
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