Sunday, 29 May 2016

देश का पहला सामाजिक विज्ञान केंद्र खुलेगा बोरदी में

रेहटी तहसील के ग्राम बोरदी में देश का पहला सामाजिक विज्ञान केंद्र खोला जाएगा। 
यहां खुलेगा सामाजिक विज्ञान केंद्र
और यह क्षेत्र के लिए गौरव की बात होगी। डॉ भीमराव अंबेडकर विश्व विद्यालय महू के द्वारा ग्राम बोरदी में इस सामाजिक विज्ञान केंद्र को खोलने के लिए 50 एकड़ भूमि प्रशासन ने खाली कराकर आरक्षित कर विश्व विद्यालय कुलपति आरएस कुरील को सौंपी है। यह सामाजिक विज्ञान केंद्र प्रदेश सहित देश का पहला सामाजिक विज्ञान केंद्र होगा। इसमें आगे भी कई विषयों पर रिसर्च सेंटर खोले जाएंगे। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी जनजाति, पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए कौशल उन्नयन प्रशिक्षण केंद्र भी यहां स्थापित किए जाएंगे।
सामाजिक विज्ञान केंद्र के लिए भूमि समतल करते हुए 
 तहसीलदार राजेंद्र जैन ने बताया कि सामाजिक विज्ञान केंद्र खोलने के लिए 50 एकड़ भूमि डॉ भीमराव अंबेडकर विश्व विद्यालय महू को दे दी है। यह देश का पहला सामाजिक विज्ञान केंद्र बोरदी में खोला जा रहा है। 

Wednesday, 25 May 2016

अविश्वसनीय जीव, हो जाता है एक से अनेक

प्रकृति ने कई बार चमत्कार कर मनुष्य को दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर किया हैं। आज भी कई स्थान, जीव, महामानव तथा इनके बारे में किवदंतियां ऐसी हैं जिनके रहस्यों ने मानव को हैरत में डाल रखा है। कई बुद्धीजीवी लोग इन किवदंतियों पर विश्वास नही करते हैं लेकिन जब वे इन्हें स्वयं देखते हैं तो दांतो तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाते हैं। वह इसलिए क्योंकि ये चमत्कार और रहस्य विज्ञान के नियम इन पर लागू नही होते हैं। अतः वैज्ञानिकों का निष्कर्ष भी इन पर अधूरा है।

हालांकी यह पेज  शिव श्रंगार सांप की एक विषेश प्रजाति को लेकर है। वशीभूत करने वाले इस सांप के बारे में जानने की जिज्ञाषा षुरू से लोगों के मन में रही है। पुराणों, ग्रंथों, किताबों में सांप और उसकी मढ़ी के बारे में लिखा गया है। अभी तक मढ़ी होने के तो कोई साक्ष्य नही मिल पाए हैं। लेकिन यह पेज सांप की उस प्रजाति को लेकर है जो खुद को अपने ही समान विभिन्न रूपों में प्रगट करने की क्षमता रखता है। इस सांप की प्रजाति का नाम सीता की लठ है। जिसे इंग्लिश् में striped keelback कहते हैं। और इसके एक से कईं हो जाने के रहस्य को लेकर हजारों पुख्ता साक्ष्य भी मिले हैं। इन साक्ष्यों का कहना है कि उनको सीता की लठ दिखाई देने पर उन्होने बांस के लठ से उसे भगाने या मारने का प्रयास किया। ऐसा करने का प्रयास करते ही बिजली की रप्तार से 7 से 8 सीता की लठें विभिन्न दिशाओं से निकलने लगी और वे दरारों और छिद्रों में चली गईं। इस घटना का फोटो और वीडियो इसलिए केप्चर नही हो सका क्योंकि यह घटना अत्यंत तीव्र गति से घटित हुई। लोगों ने उन्हें खोजने का प्रयास भी किया लेकिन मूल सीता की लठ के अलावा किसी भी सीता की लठ तक वे नही पहुंच पाए।

striped keelback

16 से 18 इंच के इस प्राणी के इस रहस्य के बारे में अभी तक कोई भी टीवी चेनल, न्यूजपेपर्स, वैज्ञानिक खुलासा नही कर सके हैं। यहां तक कि यह घटना इस साइट के अलावा कहीं प्रकाशित भी नही हुई है। सीता की लठ के इस रहस्य के बारे में कई लोगों का कहना है कि वे अपनी रक्षा के लिए यह करती हैं। विभिन्न सीता की लठों के निकलने पर मारने वाले का ध्यान भटक जाता है और वह सीता की लठ इसका फायदा उठाकर अपनी जान बचा लेती है। वैज्ञानिक तर्क वाले लोगों का कहना है कि एक नही कई पहले से ही होती होंगी। लेकिन वे समुह में नही निकलती होंगी। जब कोई उन पर हमला करता है तो वह इसका सिग्नल अपने समुह को दे देती होगी। ताकी उसका बचाव हो सके। लेकिन यह तर्क भी वे कुछ फीसदी ही सही मानते हैं। क्योंकि ये उन जगहों से भी निकली हैं जहां इनके होने की कोई गुजाइंश भी न हो। हालांकी इसके एक से कई हो जाने पर शोध नही हो सका है। इसलिए यह रहस्य से भरी हुई हैं और इसे चमत्कार कहें तो कहीं गलत नही होगा।

Sunday, 22 May 2016

बुद्ध से बनी है बुधनी

विश्व के जाने-माने धर्मों में से एक बौद्ध धर्म के संस्थापक तथा प्राचीन मनोवैज्ञानिक के रूप में पहचाने जाने वाले भगवान बुद्ध का जन्म प्रतिवर्ष भारत में वेशाखी पूर्णिमा पर बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है।
यह जन्मोत्सव विश्व के कई देशो में भी april माह में अलग-अलग दिन मनाया जाता है। बोद्ध धर्म के आज विश्व में करोड़ो अनुयायी हैं। और प्राचीन समय में मुख्यत: भारत और चीन में उनके भक्तों द्वारा बनाई गई कई बड़ी-बड़ी पाषाण प्रतिमाएं हैं। भगवान बुद्ध के जन्म पर विचार किया जाए तो उनका जन्म लगभग ५०० ई के आसपास नेपाल के लुंबनी ग्राम में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। बाद में यह अपने ध्यान और तपोबल से गौतम बुद्ध के नाम से मशहूर हुए। और इन्हे भगवान बिष्णु के अवतार में शामिल कर लिया गया। बुद्ध ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होने मनोवैज्ञानिक विधि से लोगों को ज्ञान बांटा। भगवान बुद्ध ने कई स्थानों पर जाकर लोगों को अद्भुद ज्ञान दिया। और ये क्षेत्र उनके नाम से प्रसिद्ध हो गए। मध्यप्रदेश में सांची, पचमढ़ी सहित कई स्थानों का संबंध भगवान बुद्ध से रहा है। 
होशंगावाद, रेहटी के करीब तहसील बुधनी भी भगवान बुद्ध की निवास स्थली रहा है। भगवान बुद्ध ने बुधनी क्षेत्र तथा यहां की गुफाओं में निवास किया था। तथा ध्यान लगाकर साधना की तथा अपने ज्ञान के माध्यम से लोगों के अज्ञानरूपी अंधकार को दूर किया। भगवान बु़द्ध के यहां होने से इस स्थल का नाम बुद्ध निवासिनी जाना जाता था। और धीरे-धीरे इसका नाम बुद्ध निवासिनी से बुधनी पड़ गया। 

Thursday, 12 May 2016

जानिए कैसे बना शक्तिपीठ सलकनपुर विजयासन धाम

विजयासन धाम की उत्पत्ति
शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर जिज्ञाषा रही है। लेकिन अभी तक इसके कोई भी ठोस साक्ष्य और प्रमाण नही मिल पाए हैं। कुछ पंडितो का कहना है कि यहां मां का आसन गिरने से यह विजयासन धाम बना लेकिन विजय शब्द का योग कैसे हुआ, इसका सटीक उत्तर वे नही दे पाएं है। लेकिन हम आपको बता दे कि मां विजायासन धाम के प्राकट्य का का सटीक उत्तर व उल्लेख श्रीमद् भागवत महापुराण में है। जो इस प्रकार है-
सलकनपुर मंदिर 
श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे। तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया। और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।
मंदिर निर्माण के संबंध में पीड़ी दर पीड़ी चली आ रही किवदंती के अनुसार आज से करीब 300 वर्ष पूर्व बंजारो द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर निर्माण और प्रतिमा मिलने की इस कथा के अनुसार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु अदृष्य हो गए। इस तरह बंजारे पशुओं को ढूंडने के लिए निकले, तो उनमें से एक बृद्ध बंजारे को एक बालिका मिली। बालिका के पूछने पर उसने सारी बात कही। तब बालिका ने कहा की आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। बंजारे ने कहा कि हमें नही पता है कि मां भगवति का स्थान कहां है। तब बालिका ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवति के दर्शन हुए।
माँ विजयासन देवी 
 और उन्होने मां भगवति की पूजा-अर्चना की। कुछ ही क्षण बाद उनके खोए पशु मिल गए। मन्नत पूरी होने पर  बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह घटना बंजारों द्वारा बताये जाने पर लोगों का आना शुरू हो गया और वे भी अपनी मन्नत लेकर आने लगे।
हिंसक जानवरों, चौसठ योग-योगिनियों का स्थान होने से कुछ लोग यहां पर आने में संकोच करते थे। तब स्वामी भद्रानंद ने यहां तपस्या कर चौसठ योग-योगिनियों के लिए एक स्थान स्थापित किया। तथा मंदिर के समीप ही एक धुने की स्थापना की। और इस स्थान को चैतन्य किया है। तथा धुने में एक अभिमंत्रित चिमटा, जिसे तंत्र शक्ति से अभिमंत्रित कर तली में स्थापित किया गया है। आज भी इस धुने की भवूत को ही मुख्य प्रसाद के रूप में भक्तगणों को वितरित किया जाता है।
यहां क्लिक कर जानिए कैसे हुई सलकनपुर पर्वत की उत्पत्ति



आप यहां क्लिक कर यूट्यूब पर और भी अधिक जानकारी से युक्त मां बिजासन का वीडियो देख सकते हो

Saturday, 7 May 2016

रहस्यो से भरा हुआ है सलकनपुर पहाड़ी क्षेत्र (To know more about salkanpur)

लोकेशन-: मध्यप्रदेश/सीहोर/रेहटी/सलकनपुर
सलकनपुर पर्वत की उत्पत्ति

प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर सलकनपुर क्षेत्र जो कि सैकड़ो एकड़ में फैली बिंध्य पर्वत श्रंखला के अंतर्गत आता है।


एक शांत ज्वालामुखी के ऊपर वसा हुआ है। आज से करीब 50 हजार साल पहले ज्वालामुखी के फूटने से उसके लावे से इसका निर्माण हुआ है। शांत ज्वालामुखी करीब 1lलाखसाल के अंतराल में फूटते हैं। इसका मतलब यह है कि अभी इसको फूटने में लगभग 50 हजार साल और बाकी है। मलवा उपजाऊ होने से धीरे-धीरे यह क्षेत्र हरा-भरा हो गया। और वस्तियां वसने लगी। इनमें मुख्य रूप से होशंगावाद, रेहटी, देलाबाड़ी, आंवलीघाट, नसरूल्लागंज आदि आसपास के क्षेत्र आते हैं। पौराणिक दंत्त कथाओं में इस क्षेत्र में कई महान प्रतापी राजाओं जैसे अशोक, पांडव के आने का उल्लेख भी है। यहां भगवान बौद्ध के आने का भी उल्लेख है। जिनके सबूत आज भी मौजूद है। सारू-मारू की गुफा, सम्राट अशोक का पांचवा शिलालेख, स्तूप इसके प्रमाण हैं। 
सारू-मारू की गुफा

यहीं नही यहां कई औषधीय वृक्षों की भी प्रजातियां हैं इनमें से कई विलुप्त हो चुकी हैं। जिनसे आदिमानव अपने गहरे घावों का उपचार किया करते थे। यहां सौन्दर्य से परिपूर्ण कई जल प्रपात हैं।  लेकिन जाने के रास्ते का निर्माण नही हो सका है। दर्शनीय स्थलों में सलकनपुर शक्तिपीठ विजयासन माता मंदिर, शंकर मंदिर, अमरकंटक, सारू-मारू की गुफा, सम्राट अशोक का पांचवा शिलालेख, स्तूप, देलाबाड़ी में स्थित गिन्नोरगढ़ का किला शामिल हैं। 
 प्राकृतिक जल प्रपात

इन स्थलों में देवी जी की प्रतिमा का प्राकट्य, सारू-मारू की गुफा तथा इसकी लंबाई, शिलालेख, गिन्नोरगढ़ के गौंडराजाओं का राज और उनके द्वारा लौहे से सोने बनाने की कला रहस्य से भरी हुई है। इस क्षेत्र की पूरी तरह खोजबीन नही हो सकी है। अब यह क्षेत्र पर्यटन स्थल भी घोषित हो चुका है। जहां देवी धाम सलकनपुर में रोज सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करते आते हैं। नवरात्र में तो यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है।
यहां क्लिक कर जानिए कैसे बना शक्तिपीठ सलकनपुर

Tuesday, 3 May 2016

ऐसे बनाए दांतों को चमकदार

आप खूबसूरत लगते है, जब आप मुस्कुराते है और आपके श्वेत दांतों की चमक सम्पूर्ण प्रकाश को परावर्तित कर देखने वाले की आँखों पर पहुंचती है। लेकिन यह खूबसूरती तब कम हो जाती है, जब आपके दांत पीले होते है या उनमे कोई रोग लगा होता है। पुराने समय में लोग महीनो तक मंजन नहीं करते थे, लेकिन फिर भी उनके दांत मज़बूत और सफ़ेद होते थे। आज टूथपेस्ट में नमक, नीबू, नीम और चारकोल मिलाने के बाद भी दुनिया का लगभग हर व्यक्ति दांतों की समस्याओं से पीड़ित है। अब यह समस्या आम हो गई है। बड़ता प्रदूषण, अशुद्ध पानी, अनियमित दिनचर्या, खाद्य पदार्थों में मिलाबट, रासायनिक खाद की चीज़े आदि दांतों की बीमारियों के प्रमुख कारण है। हालाँकि दांतों की मजबूती दांतों की बनावट पर भी निर्भर करती है। लेकिन इन परिस्थितियों में भी आप दांत मज़बूत और साफ रख सकते है। जिनके उपाय और सावधानिया इस प्रकार है। 
  1. दांत साफ रखने के चक्कर में तेज-तेज ब्रश न करे, इससे दांत की ऊपरी परत घिस सकती है और मसूड़े ऊपर जा सकते है, जिससे दांत बड़े लगेंगे। 
  2. दांतों का उपयोग औजार के रूप में न करे। जैसे- बायर काटना, टेप काटना आदि। 
  3. कील, पिन का उपयोग दांतों को खुरचने में न करे। 
  4. हरी सब्जियां, सलाद, संतरे, मौसम्बी, अनार, आंवले, दूध, छाछ तथा विटामिन C, D व E से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करते रहे तथा भरपूर पानी पिये। 
  5. सुबह और सोने से पहले दांतों का ब्रश करने के साथ-साथ खाना खाने या कुछ चबाने के बाद कुल्ला अवश्य करे। जीभ चलाकर दांतों को साफ करने की कोशिश करे। दांतों का अंदर से भी ब्रश करे। 
  6. पेट साफ रखे। अपच होने पर डॉक्टर को दिखाएं। 
  7. जड़ी-बूटियों से निर्मित मंजन का ही उपयोग करें। 
  8. कोल्ड्रिंक्स, तेलीय चीजों का सेवन कम करें। मीठे का सेवन कम करे। जिस दिन ज्यादा कर लिया हो उसके बाद कुल्ला करे। 
  9. जर्दा, तम्बाकू, गुठका, शराब का सेवन बंद कर दें। 
  10. महीने या सप्ताह में कम से कम एकाध बार नीम या बबूल की पतली डाली से ब्रश करे। 
  11. दांतों की ब्लीचिंग के लिए मीठा सोडा और नमक मिलकर मंजन कर सकते हो। पर इसका उपयोग उपयोग रोजाना न करे इससे दांत कमजोर पड़ सकते है। 
  12. दांतों के दर्द जैसी समस्या होने पर डॉक्टरों की सलाह ले। सरसो का तेल, हल्दी और नमक का पेस्ट बनाकर अंगुली से मंजन करे। इससे दांतों का दर्द दूर होगा। 
इस तरह से आप दांतों की समस्याओं से बच सकते हो।